सोमवार, 4 जनवरी 2021

उसकी आवारगी

उसकी आवारगी भी कितनी बेमिसाल है
 देख जिसे तितलियां भी हुई बेहाल हैं
 उसकी ज़िद भी उसकी ज़िन्दगी सी लगे 
घेरे परिवेश उलझे आसमां की तलाश है;

 उन्मुक्त करती है टिप्पणियां चुने लोगों पर 
बात पुख्ता हो इमोजी की भी ताल है
 सामान्य लेखन पर भी दे इतराते शब्द खूब 
साहित्यिक गुटबंदी में पहचान, मलाल है;

 एक से प्यार का नाटक लगे उपयोगी जब
 दूजा लगे आकर्षक तो बढ़ता उसका जाल है 
एक पर तोहमत लगाकर गुर्राए दे चेतावनी
 जिस तरह नए को बचाए उसका कमाल है;

 गिर रहा स्तर ऐसे साहित्य और भाषा का भी 
प्यार के झूले पर समूहों का मचा जंजाल है 
शब्द से ज्यादा भौतिक रूप पर केंद्रित लेखन
 उसकी चतुराई भी लेखन का इश्किया गुलाल है। 

धीरेन्द्र सिंह