रविवार, 15 जून 2025

प्यार न बदला

प्यार ऐसे ही रहा है शुष्कता न सलवटें

यार जो एक बार हुआ छूटता न करवटें

वह हसीन वादियों को कल्पना के रंग दें

मन के बादलों में होती सावनी कबाहटें


जग चला जग छला है प्यार का वलवला है

जलजला में हैं प्यारमुखी पुष्पलता चौखटें

मन का सांखल चढ़ा उत्सवी मन काफिले

चाहत की संदूक में हैं समर्पित कुछ हौसले


क्या बदला कुछ न बदला बदल गया समय

प्यार ठाढ़े टुकटुकी अभिव्यक्ति के नव फैसले

अब भी शरमाहट भर सकुचाते बदन भवन

उन्माद सतही दौड़ता एहसास गहरा नौलखे।


धीरेन्द्र सिंह

16.06.2025

12.09