सोमवार, 28 मार्च 2011

क्रिकेट

एक शोर
जोरशोर से चलाए हवा
जिससे
मुड़ जाती हैं
अधिकांश निगाहें
इसे ही कहते हैं
हवा का रूख बदलना.

एक व्यक्ति
मिलाकर कुछ व्यक्ति
लेकर कई मानव शक्ति
करता है हरण
हवा की नमी का
इसे ही कहते हैं व्यावसायिक संचलन.

एक प्रयास
मनोरंजन में लपेट
दे भावनात्मक एहसास
पूरे के पूरे देश को
एक सोच के लिए
करता मज़बूर
इसे ही कहते हैं आधुनिक आखेट
या फिर कहिए खेल क्रिकेट.


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

जीवन

निर्मोही निर्लिप्त सजल है
यह माटी में  जमी गज़ल है

खुरच दिए इक परत चढ़ी
चेहरे में भी अदल - बदल है


लोलुपता लालसा लय बनी
इसीलिए यह नई पहल है


नई क्रांति का नया बिगुल
चंगुल में लाने का छल है


मानव का मुर्दा बन जीना
फिर भी कितनी हलचल है


नई परत से चेहरा नया
हर कठिनाई का यह हल है.





भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

शुक्रवार, 25 मार्च 2011

प्यार पर एतबार

एक चाहत प्यार का झूला झूले
मन में उठती आकर्षण की हरकतें
दौड़ पड़ता मन किसी मन के लिए
यदि हो ऐसा तो कोई क्या करे

एकनिष्ठ प्यार पर एतबार तो रहा नहीं
मन है चंचल नित नवल हैं हसरतें
कैसे हो एक पर ही हमेशा समर्पण पूर्ण
दिखे हैं चेहरे हुई हैं चाहतीय कसरतें

प्यार परिभाषाओं में बांध पाया कौन
प्यार मर्यादाओं में टटोलती हैं आहटें
खुद भ्रमित कर दूजा चकित प्यार करें
कौन कहता बेअसर होती हैं सोहबतें

एक आकर्षण से बच पाना कठिन
मन को मन की है पुरानी आदतें
मैं हूं प्यार के उपवन का एक किरदार
दिल नमन करता है प्यार की शहादतें।


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

गुरुवार, 24 मार्च 2011

बंधन

उड़ चलो संग, साथ मिल जाएगा
आसमान बदलियों सा झुकता नहीं
भावनाओं का प्रवाह है निरंतर
किसी अंतर पर यह रूकता नहीं

बंधनों के स्थायित्व की खुशी
हर्षित मन को बंधन पुरता नहीं
एक रिश्ता जन्म भर का मुकाम
जन्म भर पर यह जुड़ता नहीं

होगी कई आपत्तियॉ इस विचार पर
सोच व्यापकता लिए कुढ़ता नहीं
कितनी कोशिशें हो चुकीं नाकाम
मन सोचता पर कदम मुड़ता नहीं

बंधनों को तोड़ने का न हिमायती
बंधनों में रचनात्मकता है मूढ़ता नहीं
बंधनों से मन में जो सिसकारी उठे
झेलना कायरता है यह शूरता नहीं.


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

जीवन संघर्ष

विगत प्रखर था या श्यामल था
इस पहर सोच कर क्या करना
मौसम भी है, ज़ज्बात भी है,
 

बहे भावों का निर्झर सा झरना

पल-छिन में होते हैं परिवर्तन
फिर क्या सुनना और क्या कहना
ठिठके क्षण को क्यों व्यर्थ करें
हो मुक्त समीर सा बहते रहना

एक संग बना जीवन प्रसंग है
तब जीवन से क्या है हरना
उड़ने की यह अभिलाषा प्रबल
विहंग सा उमंग से क्या डरना

रहे कुछ ना अटल है बस छल
कलछल से क्यों यौवन भरना
है एक प्रवाह के पार पहुंचना
मांझी की सोच से क्या करना.




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

बुधवार, 23 मार्च 2011

प्यार की राह

सूर्य किरणें कितनी व्याकुल हो दौड़ चलीं
इस धरा पर  प्रीत जैसै  अब तीरथ हुआ है
भोर की अरूणिमा में पुलकित हुई है चाहतें
आज मन को फिर उन्हीं यादों ने छुआ है

चंदा चुपचाप निरखता रहा रात, हतप्रभ
चांदनी में उठता यह कौन सा धुऑ है
करवटें ना समझ सकीं कसमसाहट का सबब
सितारे ना समझ पाए तो कह गए दुआ है

मन के अन्दर मन हैं और भी कई
चाहतों और आहटों को भी गुमां है
कौन सी आराधना है अनवरत, अविकल
मन की सांखल बन कौन यह गुथां है

प्यार का अधिकार हर दिल की पुकार
दो दिलों के दरमियॉ का यह कहकहा है
एक दिल से दूसरे तक दौड़ रही हैं सदाएं
प्रश्न फिर भी खड़ा कि वह दिल कहॉ है.





भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

शनिवार, 19 मार्च 2011

दर्द रंग में भींगा सकूं


कर्मठता का रंग लिए मैं खेल रहा हूं होली

सूनी आँखें टीसते दिल की ढूंढ रहा हूँ टोली



रंग, उमंग, भाँग में डूबनेवाले यहाँ बहुत हैं

रंगहीन जो सहम गए हैं बोलूँ उनकी बोली



अपनी खुशियाँ सबमें बांटू जिनका सूना आकाश

दर्द रंग में भींगा सकूं ऐसे हों हमजोली



दर्द-दुखों के संग मैं खेलूँ रंग असर रसदार

सूनी आँखों चहरे पर दे खुशियों की रंगरोली



निकल चला हूँ दर्द ढूँढने सड़कों पर गलियों में

मुझ जैसे और मिलेंगे क्या खूब जमेगी होली.






भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

शुक्रवार, 18 मार्च 2011

होली की बोली

आपके रंग  लिए उमंग, छेड़े जंग है
आपके विचारों ने, भिंगाया है मन को
आपको सोचता बैठा हूं, गुमसुम सा मैं
खेल रहा होली संग, भूलकर तन को

आपके गुलाल ने, मलाल सारे धो दिए
मेरा भी अबीर, कबीर सा धरे चमन को
दो चमकती ऑखों संग, दो गुलाल भरे हॉथ
अबीर भी अधीर सा, ढूंढे उसी उपवन को

तन की बोली मन की होली, आज हर्षाए
मन है चंचल नाचे पल-पल, नए गमन को
कैसी चूनर, कहॉ वो झूमर, बावरी जुल्फों संग
मैं निहारूं राग-रंग, आपके इस बनठन को

प्यार है, सम्मान है या आप पर है यह गुमान
रंग सारे ले ढंग न्यारे, निहारे आगमन को
एक सोच कल्पना को दे रहा अमराईयां
होली पर बोली है तरसे, श्रृद्धा आचमन को.


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

सोमवार, 14 मार्च 2011

यह ना समझिए

 
यह ना समझिए कि, दूर हैं तो छूट जायेंगी
अबकी होली में मैंने, खूब रंगने की ठानी है
यह ना समझिए कि, मिल ना सकेंगे हम
आपके ब्लॉग से, मेरे ब्लॉग का दाना-पानी है

कुछ हैं ख्याल अलहदा, कुछ हुस्न रूमानी
कुछ अंदाज़ निराला, कुछ तो ब्लॉगरबानी है
नया रिश्ता है, अहसास रिसता है हौले-हौले
दिल की आवाज यह, ना कहिए नादानी है

मैंने चुन लिया है रंग, आपके ब्लॉग से ही
जश्न-ए-होली की टोली भी वहीं बनानी है
खिल उठेंगे रंग, आपके रंग से मिलकर ही
फिर देखिएगा कि महफिल भी दीवानी है

दिल की आवाज मन में दबाए तो होली कैसी
ज़िंदगी तो फकत अहसासों की मेहरबानी है
मिलूंगा ज़रूर इस होली पर रंग साथ लिए
मेरे रंग से तो मिलिए यही तो कद्रदानी है.




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

होली


गुम हो गया है दिल मौसम भी करे ठिठोली
ऋतुओं की चितवन आई रंगों की लिए डोली

यूं तो हैं रंग सारे पर कुछ ही तुम्हें पुकारे
छूने को तड़प रहा दिल नए रंगों के सहारे
सज रही हैं मन में भावनाओं की कई टोली
फागुन में जिसने चाहा ज़िंदगी उसी की हो ली

होरी जो मैं गाऊं बस तुमको ही वहॉ पाऊं
बालक सा हो हर्षित संग पतंग मैं भी धाऊं
मांजे बहुत हैं लड़ते चले बेधड़क बोला-बोली
ले अपने-अपने रंग सब सजा रहे रंगोली

मेरी चुटकी में है गुलाल कर दो ना इधर गाल
ना-नुकुर नहीं आज, है यह रंगों का धमाल
एक नज़र रंग कर देखूं, लगती हो कितनी भोली
खिल जाओ संग रंग अपने, अब कैसी ऑखमिचौली

ना केवल गुलाल नहीं, रंग से भी भिगाना चाहूं
मुझसे बेहतर ना हो रंगसाज, मैं दीवाना चाहूं
पकड़ कलाई ले ढिठाई, बोलूं रस भरी बोली
लचक तुम्हारी अदाओं संग, भर दे तरंग होली.

भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

रविवार, 13 मार्च 2011

सुनामी भूकंप


क्या नियति है, निति क्या है, क्या है नियंता
एक प्रकृति के समक्ष लगे सब कुछ है रूहानी
क्या रचित है, ऋचा क्या है, क्या है रमंता
एक सुनामी भूकंप से हो खतम सब यहाँ कहानी 

प्यार कहीं खो गया, यार कहीं सो गया, क्या करें
दिल सुनामी हो गया लगे भूकंप सी यह जिंदगानी
एक अंकुर हुआ क्षणभंगुर खिल ना सका बाग में
पल का फेरा ऐसा घेरा जल में जलते राजा-रानी

है भविष्य गर्भ में फिर भी कल के हैं फरमान  
वर्तमान कल को जीतने की कर रहा है मनमानी
प्रकृति के नियम को तोड़े नित आग नया उसमे छोड़े
हो विराट ले भव्य ठाठ नए राग जड़ने की है ठानी

विश्व में कितना तमस है इंसान भी तो परवश है
छेड़-छाड, मोड़-माड दीवानगी की बेख़ौफ़ रवानी
प्रकृति को अब और ना छेड़ो और ना अब तारे तोड़ो
मानवीय अस्तित्व संवारो प्रकृति है सबसे सयानी. 



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है 
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

गुरुवार, 10 मार्च 2011

रंगों का पर्व

 
ऱंगों का पर्व आया रंग गई हवाएं
मंद कभी तेज चल संदेसा लाएं
एक शोखी घुल कर फिज़ाओं में
पुलकित फुलवारी जैसी छा जाए

अबीर,गुलाल से शोभित हो गुलाब भाल
सुर्ख गाल देख चिहुंक रंग भी भरमाए
अधरों की रंगत छलक-छलक जाए तो
पिचकारी के रंग सब भींग के शरमाए

रंगों के पर्व पर मन हुआ अजीब है
जियरा की हूक बेचैनी दे तड़पाए
फाग की आग में कुंदनी कामनाएं
चोटी पर पहुंच दूर से किसे बुलाए

सत्य का यह विजय पर्व सबको लुभाए
होलिका दहन में राग-द्वेष सब जल जाए
आ गई रंग लेकर के फिर होली यह
ना जाने यह रंग कब किसको छल जाए,




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

सोमवार, 7 मार्च 2011

आज महिला दिवस है

शब्द शंकर हो गए बनी भावनाएं भभूत
घंटियों की ध्वनि से बरस रहा रस है
शिखर पर फहरा रही हैं रंगीन पताकाएं
टोलियॉ गूंज उठी आज महिला दिवस है

श्रम, समर्पण, नयन दर्पण जिनका रिवाज़ है
पारिवारिक दायित्वों पर जिसका ही बस है
एक दिवस ऊभर कर नारी की गुहार करे
सर्जना पुकार रही आज महिला दिवस है

शून्य ऑखें ढूंढ रही कहीं अपना मचान
देहरी से बंधे कदम चले ना कोई बस है
शिक्षा, समाज, स्वतंत्रता के तड़प के बोल
खोल दो सांखल मिल आज महिला दिवस है

गॉव, नगर देखिए अब, जो  शहर से दूर हैं
अज्ञानता, अनभिज्ञता का अनर्गल तमस है
नारी आज मिल चलो विजय पथ की ओर
जीत की ज्योत जले आज महिला दिवस है.


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

शुक्रवार, 4 मार्च 2011

तुम ना देती साथ

जीवन के नित संघर्षों में, वेग बड़ा तूफानी है
नित प्रवाह से मिले थपेड़े, संघर्षरत ज़िंदगानी है
कदम दौड़ते रहते हरदम, हॉथों में लिए प्यास
चूर-चूर कर बिखर मैं जाता, तुम ना देती साथ


प्यार शब्द से यार जुड़ा जिसमें है अख्तियार
संसार में अतिचार है चहुंओर विविध है पुकार
स्वप्न बड़े हैं, लक्ष्य बड़े हैं, हो जाता शिलान्यास
एक नींव से ना जुड़ पाता, तुम ना देती साथ


कोलाहल है, कलुषित-कल्पित यहॉ नया हर भेष है
खुशियॉ, उत्सव, हर्ष, ख्वाहिशें, बस थोड़ी सी शेष हैं
गतिशीलता में ना जाने कब लग जाता एक फॉस
जीवन जटिल जंग हो जाता तुम ना देती साथ

एक हो तुम मृदु तरंगिनी, खूबसूरत लय विश्वास
पुष्पित पल्लवित धरा झूमती संग सरगमी साज
तुम ही हो आत्मशक्ति तुम निज़ता का अहसास
मैं ना रह पाता एक गूंज, तुम ना देती साथ.




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

गुरुवार, 3 मार्च 2011

सत्य,असत्य

सत्य का असत्य का है प्रादुर्भाव यहॉ
किसका पलड़ा भारी है ख़बर नहीं
हर किसी परिवेश में यह युग्मता
एकनिष्ठ हो मानव इसकी सबर नहीं

जीत ही अब मीत है यह रीत है
सत्य, अहिंसा मानो कोई डगर नहीं
अपनी दुनिया, अपनी झोली, स्वार्थ बस
शब्दों में है सांत्वना सच मगर नहीं

नित नए प्रलोभनों से जूझता यथार्थ
साख, प्रतिष्ठा, वैभव निर्मल नज़र नहीं
प्रतिभाएं हैं हाशिए पर स्वंय में तल्लीन
जुगाड़ुओं की चल रही कहीं बसर नहीं

सत्य समर्थित है पूर्ण समर्पित यहॉ
सत्य का संघर्ष है कैंची कतर नहीं
जो टिका है सत्य पर साधक, संज्ञानी है
युग प्रवर्तक है वही शब्दहीन अधर नहीं.

भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

मंगलवार, 1 मार्च 2011

हे भैरव

आदि से अनंत तक हो जिसका निनाद
जिसके नेत्र से सदा आलोकित हो गौरव
भस्म,भभूत, भंग, बन विकराल महाकाल
शक्ति का प्रचंड प्रवाह काल डरे सुन भैरव

देख कर त्रिशूल सकुल शूल शमन हो
मुद्राएं अभिव्यक्ति संग संकेत करे तांडव
सृष्टि की छटा में कालिमा सी घटा दिखे
ध्यानमग्न धूल धूसरित कर,करे पराभव

भोले भंडारी हैं, गणों के संग मदारी हैं
पर्वत संग पार्वती पूज्य, जागृत कभी शव
हलाहल का कोलाहल दमित हो बने शून्य
डमरू का डम-डम का दमखम है यह भव

अर्पित मनोभाव हैं, विचित्र सा स्वभाव है
पवित्र, पुण्य प्रतीक हैं, नमन करें मानव
शक्ति दो, सामर्थ्य दो, विजयी पुरूषार्थ दो
मनुष्यता पुलकित रहे, परास्त रहें दानव. 




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
 शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.