तब जला था दीप प्यार
जब राह ढल पड़े थे
किसने किए प्रयास कहां
दो हृदय मिल पड़े थे
कामना का मांगना जारी
याचना राह बल पड़े थे
क्षद्म हवा इतनी लुभाई
संग वह चल पड़े थे
मैं यहां वह भी कहीं है
दूरियां दाह लहक अड़े थे
एक ज्वाला प्रबल चपल
दोनों ओर दोनों खड़े थे
सुप्त होकर लुप्त अगन हो
होते जीवित मृत पड़े थे
प्यार दोबारा हो सकता नहीं
कोशिशें कर कई लड़े थे।
धीरेन्द्र सिंह
23.02.2025
15.35