रविवार, 23 फ़रवरी 2025

प्यार दोबारा

 तब जला था दीप प्यार

जब राह ढल पड़े थे

किसने किए प्रयास कहां

दो हृदय मिल पड़े थे


कामना का मांगना जारी

याचना राह बल पड़े थे

क्षद्म हवा इतनी लुभाई

संग वह चल पड़े थे


मैं यहां वह भी कहीं है

दूरियां दाह लहक अड़े थे

एक ज्वाला प्रबल चपल

दोनों ओर दोनों खड़े थे


सुप्त होकर लुप्त अगन हो

होते जीवित मृत पड़े थे

प्यार दोबारा हो सकता नहीं

कोशिशें कर कई लड़े थे।


धीरेन्द्र सिंह

23.02.2025

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