शनिवार, 19 जून 2021

फेसबुकिया बीमारी

 मैं नहीं जा पाता हूं

सबकी पोस्ट पर

देने अपनी हाजिरी

कभी टिप्पणियां

अक्सर लाइक,

यह भीड़ तंत्र

साहित्य की 

फेसबुकिया बीमारी है

कल तुमने किया लाइक

तो आज मेरी बारी है,

मन की रिक्तता

नहीं होती जब संतुष्ट

भावों को अभिव्यक्ति दे

तब भागता है मन

भीड़ की ओर

लोग आएं और मचाएं

निभावदारी का शोर,

नहीं गाता हूं 

दूसरों के लिए

बेमन गाने, टिप्पणियां, लाइक

भ्रमित प्रशंसा काल में

साहित्य की धूनी

बुला लेती है खुद ब खुद

समय के एक भाग को।


धीरेन्द्र सिंह


मेरी सर्वस्व

 प्यार उजियारा पथ, डगर दर्शाए

आपकी रोशनी से जिंदगी नहाई है

तृषित न रह गई तृष्णा कोई अपूर्ण

तृप्ति भी आकर यहां लगे शरमाई है

 

पथरीली राहें थीं कंकड़ीली डगरिया

बनकर मखमल तलवों तक पहुंच आई है

ऐसी शख्सियत मिलती भला कहां

चांदनी भी है और अरुणाई है


रुधिर के कणों में डी एन ए तुम्हारा भी

खानदानी बारिश सा तुम भिंगाई हो

तुम्हें सर्वस्व कह दिया तो सच ही कहा

संपूर्णता संवरती तुम्हारी जगदाई है।


धीरेन्द्र सिंह