मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

प्याज़

नए सफर की ओर चली
लेकर सरपर अपना ताज
नज़र-नज़र को धता बताकर
उछल रही है प्याज

हॉथों से छू भी ना सकें
रसोई को आए लाज
आंसू बिन अंखिया पथराए
बहुत छकाए प्याज

ऊंची उठती फिर आ जाती
जैसे हो सांजिंदे की साज
मगन,मृदुल जिव्हा हो जाती
पाकर मनचली प्याज

मंडी, ठेले के सब मेले
मिल मांगे दुआएं आज
थाली का माली मिल जाए
सबकी हो जाए फिर प्याज.


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.