प्यार यदि देह है फिर क्या नेह है
कुछ भी संभव कहीं भेद लिए देह है
एक उम्र आते ही कहते बस हुआ
ईश्वर की भक्ति करो उम्र को छुआ
देह तो तब भी प्यार करना खेद है
कुछ भी संभव कहीं भेद लिए देह है
प्यार पर लिख रहे उम्र भी तो देखिए
लोग क्या कहेंगे गरिमा के जो भेदिए
लेखन में पड़े कुछ करते नहीं गेय है
कुछ भी संभव कहीं भेद लिए देह है
अधेड़ उम्र में प्यार क्यों हैं करते
भक्ति लो मुक्ति लो अचानक हैं मरते
परलोक की सोचें देह नश्वर विदेह है
कुछ भी संभव कहीं भेद लिए देह है।
धीरेन्द्र सिंह
06.06.2025
10.21