शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

हुस्न की साजिश

एक हुस्न की साजिश है
एक अदा की है रवानगी
सब कुछ निखर रहा है
दे दी क्या यह दीवानगी

अपनी डगर की मस्तियों में
बिखरी रहती थी चॉदनी
तारों में अटके ख्वाब कुछ
घुलती रहती थी रागिनी

अब कहॉ गया है दिल
कहॉ गई वह सादगी
किसकी राह तके ऑखें

पसरी हुई बस बेचारगी

शोला लपक गया यकायक
खिलने लगी है बेखुदी
अब हुस्न का दरिया बसेरा
और चाहत भरी आवारागी