शुक्रवार, 12 मई 2023

मर्तबान

 कथ्य की नगरी में तथ्य मर्तबान है

झूठ को खरीदिए सजी दुकान है


छल की छुकछुकाहट नहीं है कबाहट

कड़वाहट का अब असंभव निदान है


क्षद्म का बज़्म आकर्षण का केंद्र

प्रवेश मिल जाएगा गर मेहरबान हैं


निजता के हांथों तौल गए कई लोग

धूर्तता का एक अपना संविधान है


भोली सूरत का प्रेम खुदगर्ज सा 

फिर भी रहो जुड़े कि कीर्तिमान है


संशय के अंजन से सजी हुई अंखिया 

आधीरात को कहें हुआ बिहान है


कब कौन किस कदर लूटे अस्मिता

भावनाओं को छुपाए कब्रिस्तान है।


धीरेन्द्र सिंह

12.05.2023

23.05