शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2017

ताश के पत्तों की तरह फेंट रहा दिल
कोशिश यही कि जाएं खूब हिलमिल
दिल का मिलना है जैसे सूर्यमुखी खिलना
और फिर चहक उठें दिल दो खिल-खिल

सब प्यार की चादर से दुआ प्रीत की मांगें
अरमान दिल में संग मीत को लिए भागें
छू न सके छाया, माया, प्रतिकाया कातिल
चाहत के धागों से जो सजी चुनरी झिलमिल

परिचय में प्रस्फुटित एक नया मचान है
नयनों में अंकित प्रेम का फरमान है
तरल भावनाएं उमंगित रही तलाश साहिल
परिचय भी हो गहरा यूँ तो चाहे नई मंजिल

खयालों में शब्दों में सब समेट रहा हूँ
उत्साह लिए दिल को नित फेंट रहा हूँ
एक शबनमी सुबह से मिले रश्मियाँ खुशदिल
क्या बात रहे फिर जो जवां दिल जाएँ मिल।

गुरुवार, 16 फ़रवरी 2017

स्मिति की परिधि में उल्लास तुम्हारा
एक शक्ति पुंज का मिल गया है सहारा
मैं भ्रमर सा यायावर पुष्प डाल का
एक डाल ज़िन्दगी का बन गयी है नज़ारा

स्पंदन, शीतल चन्दन, भाव में वंदन
जिस क्षण हम मिले उस पल का अभिनन्दन
कश्ती को लहरों का मिला है सहारा
सागर की हुंकारों में है नाम तुम्हारा

उलझी ना डगर है पर पेंच मगर है
कुछ दूरियां कुछ व्यस्तताओं का समर है
धड़कनों को अनवरत तुम्हारे नाम का सहारा
तुम विश्व हो और अभिसार का चौबारा

पल्लवित, पुष्पित तुम्हारी हर क्यारी है
ह्रदय में विभिन्न छटाएं ही तुम्हारी हैं
अनुभूतियों ने क्षण को निखारा है संवारा
स्मिति की परिधि में विश्वास का नजारा।