समझ ले तुमको कोई
यह जरूरी क्यों है
लोग देतें रहें सम्मान
यह मजबूरी क्यों है
हृदय संवेदनाएं करें बातें
बातों की जी हजूरी क्यों है
खुद को ढाल लिया खुद में
कहे कोई मगरूरी क्यों है
हर जगह है अकेलापन
भीड़ जरूरी क्यों है
सुगंध तुमसा न मिले
खुश्बू अन्य निगोड़ी क्यों है
सूर्य सा तपकर भी
आग तिजोरी क्यों है
भावनाओं को समझ ना सकें
शब्द मंजूरी क्यों है।
धीरेन्द्र सिंह
28.04.2025
19.48