जो भी आता मुझसे मिलता
औपचारिकता संग छुपे दिल का
इसमें उनकी क्या कोई गलती
सांसारिकता अब चुके दिन सा
जीवन में है मिला जो धोखा
लोग हैं सोचते संपर्क साहिल सा
लहरों सा छूकर तट लौट जाना
संबंध अब तो है बस हासिल सा
तर्क और विवेक के अनुभव कहें
असत्य सब सत्य मात्र काबिल का
हर संपर्क तौलता निज लाभ हानि
जग यही सोचता कर्म कातिल सा।
धीरेन्द्र सिंह
09.05.2025
19.05