मंगलवार, 1 मार्च 2011

हे भैरव

आदि से अनंत तक हो जिसका निनाद
जिसके नेत्र से सदा आलोकित हो गौरव
भस्म,भभूत, भंग, बन विकराल महाकाल
शक्ति का प्रचंड प्रवाह काल डरे सुन भैरव

देख कर त्रिशूल सकुल शूल शमन हो
मुद्राएं अभिव्यक्ति संग संकेत करे तांडव
सृष्टि की छटा में कालिमा सी घटा दिखे
ध्यानमग्न धूल धूसरित कर,करे पराभव

भोले भंडारी हैं, गणों के संग मदारी हैं
पर्वत संग पार्वती पूज्य, जागृत कभी शव
हलाहल का कोलाहल दमित हो बने शून्य
डमरू का डम-डम का दमखम है यह भव

अर्पित मनोभाव हैं, विचित्र सा स्वभाव है
पवित्र, पुण्य प्रतीक हैं, नमन करें मानव
शक्ति दो, सामर्थ्य दो, विजयी पुरूषार्थ दो
मनुष्यता पुलकित रहे, परास्त रहें दानव. 




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
 शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.