गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

शब्द जब भावनाओं में ढलता है

 
शब्द जब भावनाओं में ढलता है
ख़्वाहिशों संग मन पिघलता है
एक मिलन की ओर बढ़ता प्रवाह
ज़िंदगी तो फकत समरसता है

जी भी लेने के हैं जुगत कई
पसीने से ना फूल खिलता है
कर्म और भाग्य की लुकाछिपी है
ज़िंदगी भी लिए कई आतुरता है

शब्द ही तो समय को रंगता है
शब्द में एकरसता तो विषमता है
शब्द के निनाद से गुंजित आसमान
शब्द ही तो एहसासों में खनकता है

हमने जो पाया नहीं कि भाया है
वक़्त भी ज़िंदगी संग ढलता है
सतत संघर्षरत जीवन लय संग 
शब्द संग जीवन सतत सँवरता है।   


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है 
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

जीत अपूर्व

 
फिर हवाओं ने छुआ नवपल्लवित पंखुड़ियाँ
नव सुगंध ने सुरभि शृंखला संव्यवहार किया
अभिनव रंग में हुआ प्रतिबिम्बित प्यार
फिर चाहत ने राहों से प्रीतजनक तकरार किया

लगन लगी की हो रही चारों ओर बतकही
प्रीत की रीत यह बेढंगी सबने तो स्वीकार किया
अलख जगी तो लगी समाधि समर्पण की
दिल ने जुड़कर पल-पल को जीवन का त्योहार किया

दुनिया की अनदेखी करने का न मिला संस्कार
दूरी रख कर चाहत ने जीने का इकरार किया
वैसे भी सब मिलता नहीं जो चाहे दिल
दर्द-ए-दिल की चिंगारी में हवन बारम्बार हुआ

आखिर वक़्त संवारा आया हट गया साया
दुनिया ने इस श्रुति का आखिर पुकार किया
सच्चाई को जीत अपूर्व मिलती है ज़रूर
मिलती है मंज़िल अगर कोई ना गुमराह किया।


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.