गुरुवार, 28 मार्च 2019

ज़िन्दगी

बूंदें जो तारों पर लटक रही
तृषा लिए सघनता भटक रही
अभिलाषाएं समय की डोर टंगी
आधुनिकता ऐसे ही लचक रही

चुनौतियों की उष्माएं गहन तीव्र
वाष्प बन बूंदें शांत चटक रही
बोल बनावटी अनगढ़ अभिनय
कुशल प्रयास गरल गटक रही

जीवन में रह रह के सावनी फुहार
बूंदें तारों पर ढह चमक रही
कभी वायु कभी धूप दैनिक द्वंद
बूंदों को अनवरत झटक रही

अब कहां यथार्थ व्यक्तित्व कहां
क्षणिक ज़िन्दगी यूं धमक रही
बूंद जैसी जीवनी की क्रियाएं
कोशिशों में ज़िन्दगी खनक रही।

धीरेन्द्र सिंह

बुधवार, 27 मार्च 2019

तकनीकी संबंध

मधुर मृदुल करतल
ऐसी करती हो हलचल
स्मित रंगोली मुख वंदन
करती आह्लादित प्रांजल

सम्मुख अभ्यर्थना कहां
मन नयन पलक चंचल
फेसबुक, वॉट्सएप, मैसेंजर
दृग यही लगे नव काजल

मन को मन छुए बरबस
भावों के बहुरंग बादल
अपनी मस्ती में जाए खिला
मन सांखल बन कभी पागल

ऑनलाइन बाट तके अब चाहत
नेटवर्क की शंका खलबल
वीडियो कॉल सच ताल लगे
अब प्रत्यक्ष मिलन हृदयातल।

धीरेन्द्र सिंह

मंगलवार, 26 मार्च 2019

दुनिया है तो दुनियादारी है
दाल, चावल, गेहूं, तरकारी है
निजी है तो बेहतर ही होगा
मिल जाता खोट गर सरकारी है

उत्तरोत्तर कर रहा विकास चतुर्दिक
ऐसी प्रगति भी लगे दुश्वारी है
बाजारवाद में अपनी बिक्री की चिंता
रोको, अवरोध, कहां विरोध कटारी है

सत्य कहां निर्मित होता प्रमाण मांग
गर्भावस्था की क्या प्रामाणिक जानकारी है
भ्रूण की किसने देखा संख्या बतलाओ
सत्य हमेशा नंगा बोलो क्या लाचारी है।

धीरेन्द्र सिंह