शुक्रवार, 23 मई 2025

चलो

 शक्ति से शौर्य से लुभाते चलो

लोग चलें न चलें भुनाते चलो


प्यार, श्रृंगार, अभिसार से पार

कामनाएं मृदुल भाव की न धार

अपनी चाल हो अन्य में ना ढलो

लोग चले न चलें भुनाते चलो


नारी बिंदिया से उदित होता सूर्य

नारी प्यार ऊर्जा करती है उत्कर्ष

आज नारी हुंकारी हाँथ ना मलो

लोग चले न चलें भुनाते चलो


प्रणय अब लग रहा प्रसंगहीन

कब तक निश्छलता छल अधीन

जन, ज़र, ज़मीन प्रतिकूलता तलो

लोग चले न चलें भुनाते चलो।


धीरेन्द्र सिंह

24.05.2025

10.15