शक्ति से शौर्य से लुभाते चलो
लोग चलें न चलें भुनाते चलो
प्यार, श्रृंगार, अभिसार से पार
कामनाएं मृदुल भाव की न धार
अपनी चाल हो अन्य में ना ढलो
लोग चले न चलें भुनाते चलो
नारी बिंदिया से उदित होता सूर्य
नारी प्यार ऊर्जा करती है उत्कर्ष
आज नारी हुंकारी हाँथ ना मलो
लोग चले न चलें भुनाते चलो
प्रणय अब लग रहा प्रसंगहीन
कब तक निश्छलता छल अधीन
जन, ज़र, ज़मीन प्रतिकूलता तलो
लोग चले न चलें भुनाते चलो।
धीरेन्द्र सिंह
24.05.2025
10.15