गुरुवार, 30 नवंबर 2023

तूफान है आनेवाला

 मन उमस सा भाव सहज चितवाला

अभिव्यक्तियां ठहरी तूफान है आनेवाला


सबसे कटकर रहना और बात न करना

एक अजीब खामोशी का रहता धरना

विषय अधूरे सब मन ना लिखनेवाला

अभिव्यक्तियां ठहरी तूफान है आनेवाला


वैचारिक आच्छादित बदलियां क्रमशः

प्रतिदिन लेखन गति कहे मत बह

कल्पनाशीलता को कौन है जडनेवाला

अभिव्यक्तियां ठहरी तूफान है आनेवाला


सम्प्रेषण संवाद सहित कभी वाद-विवाद

इस समूह से उस समूह तक परिवारवाद

रचनात्मकता पर अपने फोटो की क्रममाला

अभिव्यक्तियां ठहरी तूफान है आनेवाला


हर घटना का मिलता पहले से संकेत

शान्ति अजीब में उड़ता सुगंध अतिरेक

मन उत्सुक क्या कुछ उड़ है आनेवाला

अभिव्यक्तियां ठहरी तूफान है आनेवाला।


धीरेन्द्र सिंह

30.11.2023

19.58


बुधवार, 29 नवंबर 2023

प्लास्टिक फुलवारी

 हृदय स्पंदनों की पर्देदारी

यही सभ्यता यही होशियारी


कामनाओं के प्रस्फुटन निरंतर

अभिव्यक्तियों के सब सिकंदर

गुप्तता में सकल कर्मकारी

यही सभ्यता यही होशियारी


प्रतीकों में हो रही बातें

इ मिलाप के दिन रातें

संबंधों में इमोजी लयकारी

यही सभ्यता यही होशियारी


मौलिकता की खुलेआम चोरी

सात्विकता की दिखावटी तिजोरी

मानवता की विचित्र चित्रकारी

यही सभ्यता यही होशियारी


सबके समूह सबके घाट

सब अलमस्त दिखाए ठाठ

आधुनिकता बनी प्लास्टिक फुलवारी

यही सभ्यता यही होशियारी।


धीरेन्द्र सिंह

29.11.2023

19.03

सोमवार, 27 नवंबर 2023

चुक गए संवाद

 शब्द कितने चुक गए संवाद

फिर भी कथनी नहीं आबाद


प्यार कितने रूप में हैं बिखरे

और कितने भाव के जज्बात


शब्द भाव लगे रेत धूरी

भाव निभाव की हरकत अधूरी

कल्पनाओं की सजे नित बारात

अनुभूगियों के भी घात-प्रतिघात


भंवर सा घूमता भाव प्यार

संवर कर ढूंढता चाव धार

सीढ़ियों पर दिखता हर नात

प्यार ऊंचा हो कबकी बात


लिख रहे कुछ, जिएं प्यार

पढ़ रहे, समझ की झंकार

शब्द चुका या चुका संवाद

कथनी संग मथनी नित मुलाकात।


धीरेन्द्र सिंह

27.11.2023

21.29


रविवार, 26 नवंबर 2023

कभी तुम

कभी तुम सोचती राहों से गुजरी हो
कभी क्या वादे कर के मुक़री हो
प्रणय के दौर के बदलते तौर कई
क्या कभी तुम अपना तौर बदली हो

अंजन रचित नयन नित बन खंजन
हृदय के द्वार पर अलख निरंजन
क्या इन स्पंदनों में कभी बिखरी हो
क्या कभी तुम अपना तौर बदली हो

समर्पित प्यार ही निभाव का अनुस्वार
बारहखड़ी बोलो नहीं क्या इसका द्वार
व्याकरण प्यार का क्या सुर डफली हो
क्या कभी तुम अपना तौर बदली हो

समझ ना आए समझाने पर यह प्यार
डूबकर दबदबाना और प्रदर्शित प्रतिकार
समझ में तुम भी क्या जैसे अर्दली हो
क्या कभी तुम अपना तौर बदली हो।

धीरेन्द्र सिंह
26.11.2023
22.22

शनिवार, 4 नवंबर 2023

इस जमाने में

 मैंने नभ को छोड़ दिया बुतखाने में

वायरस संक्रमण मिले इस जमाने में


सूर्य रश्मियां छू न सकें अभिलाषी

जीव-जंतु सब ऊष्मा के हैं प्रत्याशी

धरती बदल रही जाने-अनजाने में

वायरस संक्रमण मिले इस जमाने में


पत्ते धूल धूसरित भारयुक्त भरमाए

कैसे हो स्पंदित जग पवन चलाएं

आरी और कुल्हाड़ी उलझे कट जाने में

वायरस संक्रमण मिले इस जमाने में


उद्योग जगत में भी दिखे मनमानी

यहां-वहां, गंगा में छोड़ें दूषित पानी

माँ गंगा को कर प्रणाम आचमन गाने में

वायरस संक्रमण मिले इस जमाने में


दिन में पैदल चलना भी एक साहस है

वायु, वाहन, व्यग्रता से सब आहत हैं

क्या जाएगा बदल ऐसा लिख जाने में

वायरस संक्रमण मिले इस जमाने में।


धीरेन्द्र सिंह

04.11.2023

13.08