मंगलवार, 11 जून 2024

फरीदाबाद

 उसके फोन में इतने नाम हैं

लगे सब ही उलझे, बेकाम हैं

हर किसी से हो बातें आत्मीय

सब सोचें संबंध यह सकाम है


क्यों लरजती है इस तरह लज्ज़ा

चूनर लटक रही घुमाती छज्जा

जो था कभी करीब गुमनाम है

सब सोचें संबंध यह सकाम है


45 वर्ष में बदन भरने लगा है

प्रसंग भावुकता में बढ़ने लगा है

बंद फेसबुक सक्रिय टेलीग्राम है

सब सोचें संबंध यह सकाम है


नारी शक्ति, स्वन्त्रत आसमान

नारी स्वयं में है पूर्ण अभिमान

फरीदाबाद जिंदाबाद प्रणय धाम है

सब सोचें संबंध यह सकाम है।


धीरेन्द्र सिंह

12.06.2024


08.30

अनुरागी

 एकल प्रणय प्रचुर अति रागी

खुद से खुदका गति अनुरागी


तन की दहकती हैं खुदगर्जियाँ

मन में आंधियों सी हैं मर्जियाँ

समय की धूनी पल क्या पागी

खुद से खुदका गति अनुरागी


काया कब कविता सी रचि जाए

अनुभूतियों में बिहँसि धंसि जाए

आंचल को गहि सिमटी हिय आंधी

खुद से खुदका गति अनुरागी


प्रश्रय प्रीत मिले तो प्रणय प्रयोज्य

आश्रय ढीठ खिले लो तन्मय सुयोग्य

उठ बैठा संग साड़ी जैसे प्रखर वादी

खुद से खुदका गति अनुरागी।


धीरेन्द्र सिंह

11.06.2024

17.43