आज बहुत दिन बाद
नींद खुलते ही
प्रतीत हुआ कि
प्रणय की बदलियां
मन में उमड़-घुमड़
संवेदनाओं को जगा रही हैं,
जग तो जाता हूँ
याद आती हैं
जब आप ऐसे,
जैसे चटकी हो कली
फूल खिला हो जैसे,
जिसकी सुगंध
तन को अधलेटा कर
बंद कर पलकें
करती रहती हैं सुगंधित
आप से जुड़ी कल्पनाओं को,
बदलियां सेमल की रुई सी
कोमल स्पर्श कर
आपकी अंगुलियों सी
निर्मित कर रही हैं
पुलकित झंकार,
व्योम में भी
बदलियां बूँदभरी
बरसने को तत्पर दिखीं,
मौसम बरसाती हो गया,
बंद पलकें
एक अलौकिक आनंद से
अभिभूत
कल्पनाओं की
घनी बदलियों में
आप संग करता रहा
उन्मुक्त विचरण,
जीवन के दायित्वों ने
कर दिया विवश
खुल गयी पलकें
और बरसाती मौसम में
आज फिर आप
मेरी कविता से लिपट गईं।
धीरेन्द्र सिंह
28.05.2025
06.30