शनिवार, 16 मार्च 2024

ना जाने

 ना जाने हम कैसे महकते रहे

चली राह वैसे हम चलते रहे

एक संगीत गूंजती थी मेरे साथ


अलमस्त गीतों को रचते रहे


मिली कुछ अदाएं जैसी फिजाएं

आँचल सी लहराती मोहक दिशाएं

जहां तक हवाएं बहकते रहे

अलमस्त गीतों को रचते रहे


प्रणय का विलय शब्द भाव किए

बहुत दूर हैं संग उनके ही जिए

तिरस्कार पाकर सुप्त जलते रहे

अलमस्त गीतों को रचते रहे


संग जी लिया उम्र को पी लिया

आसक्त था अनासक्त अब जिया

राह एकल ढलते उभरते रहे

अलमस्त गीतों को रचते रहे।


धीरेन्द्र सिंह

16.03.2024

2१.02

वह हैं कहते

 मुझे इन पलकों से अनुमति मिली है

अब वह हैं कहते कि सहमति नहीं है


नयन के विवादों से हुआ था समझौता

नत होकर पलकों ने दिया तब न्यौता

अधर स्मिति रचि मति गही है

अब वह हैं कहते कि सहमति नहीं है


फागुन के पाहुन की हो रही अगुवाई

प्रीत की झंकार निखार रही अंजुराई

चाहत की चौखट चमकती वहीं है

अब वह हैं कहते कि सहमति नहीं है


रंगों ने बाजार में ग़दर है मचाई

पर रंगने में उसकी है ढिठाई


“बुरा न मानो” रास्ता ही सही है

अब वह हैं कहते कि सहमति नहीं है।


धीरेन्द्र सिंह

16.03.2024

19.23

शोर

 बहकते रहो तुम भभकते रहो

शोर के भाव ले चहकते रहो


कुछ किताबें लिखी जो हो बतकही

विद्वता का पताका कही सो सही

मूल क्या है कभी ना लहकते गहो

शोर के भाव से चहकते रहो


यह ना समझें चालें हैं अज्ञात

विगत की धूरी से लेखन नात

धर्म ग्रंथ कथानक लिखते बहो

शोर के भाव से चहकते रहो


एक आकर वर्तनी सुधारने लगे

भाषा अज्ञानता को बखानते चले

भाषा भंगिमा संग यूं गमकते ढहो

शोर के भाव से चहकते रहो


फेसबुकिया मंडली के ओ शिल्पकार

कमेंट्स और लाइक के हो तलबगार

उड़ ना पाओगे ऐसे ही मंजते रहो

शोर के भाव से चहकते रहो।


धीरेन्द्र सिंह

16.03.2024

15.20

एक खयाल

 एक खयाल का कमाल 

आप ही का है धमाल 

स्पंदनों की चाँदनी है 

दूरियों का है मलाल 


तुम कहो क्यों सोच 

विगत का ही सवाल 

ऐसी सोच से ही 

हृदय करता है बवाल 


सुन रही हो रागिनी

स्वर का है मलाल 

सप्तक हतप्रभ खड़े हैं 

भटक गए हैं ताल 


चलो एकराग अब बनें

गति हो सुगम द्रुतताल 

समन्वय ही राह जीवम

तुम सदा हो दृगभाल। 


धीरेन्द्र सिंह 

15.03.2024 

22.36

खोजते ही रहे

 कहाँ किसकी कब लगी यह दुआ 

कथानक अचानक नियामक हुआ


जो सोचा उसे खोजते ही रहे 

लोग ऐसे मिले रोकते ही रहे 

अब किसने हौले मन को छुआ

कथानक अचानक नियामक हुआ 


शब्द प्रारब्ध से हो रहा स्तब्ध 

भाव भी क्रमशः होते रहे ध्वस्त  

दिल रहा बोलता लगी है बददुआ 

कथानक अचानक नियामक हुआ 


सहजता सरलता सत्यता का सम्मान 

करे अभिव्यक्त जीवन के आसमान 

तापमान स्थिर शेष गया बन धुआं 

कथानक अचानक नियामक हुआ। 


धीरेन्द्र सिंह 

15.03.2024

14.48

शनिवार, 10 फ़रवरी 2024

गुलाब

 

चल गुलाब ढल गुलाब

हलचल सा तू बन गुलाब

 

अंगुलियों के स्पर्श बतलाएं

पंखुड़ियों भाव लिपट अंझुराएं

छुवन से जाने इश्क़ नवाब

हलचल सा तू बन गुलाब

 

मेरी हलचल गीत ढल गई

मीत मेरी अतीत बन गई

उनके मन हो जतन गुलाब

हलचल सा तू बन गुलाब

 

शब्द यूं महको करें कुबूल

भावना में लिपटे हैं फूल

इन फूलों से सज हों माहताब

हलचल सा तू बन गुलाब।


 

धीरेन्द्र सिंह

10.02.2024

21.44

व्यक्ति

 कल्पनाएं अथक पथिक

भाव से राहें रचित

लक्ष्य लंबा हो गया

व्यक्ति कहीं खो गया


मैं से कौन है परिचित

रोम-रोम संपर्क जड़ित

सरायखाना हो गया

व्यक्ति कहीं खो गया


शक्ति, भक्ति और युक्ति

यह स्थिर उसकी मुक्ति

प्रवाह नव वो गया

व्यक्ति कहीं खो गया


बौद्धिक अति बौद्धिक वर्गीकरण

सबका सब ही हैं शरण

विभाजन अंजन ले गया

व्यक्ति कहीं खो गया।



धीरेन्द्र सिंह

10.02.2024

17.24