सोमवार, 5 मई 2025

भाव जगाने

 कुचले गए हैं भाव निभाने को तराने

कुचलन करे उछलन वही भाव जगाने


स्तब्ध जब किया जप्त हुई भावनाएं

सुलगती राख हो गयी कई कामनाएं

ढांढस बंधाए लेकर तरीके कई मनाने

कुचलन करे उछलन वही भाव जगाने


हर व्यक्ति पास हैं कुचले हुए कुछ भाव

जिंदगी की जरूरत का था तब निभाव

अब समय गया बीत वह सबक भुनाते

कुचलन करे उछलन वही भाव निभाने


थक गया है जीवन दाग छुपते-छुपाते

खुद से कितना भागना लुकते-लुकाते

वही दौर फिर जगेगा सूनी चाह जगाने

कुचलन करे उछलन वही भाव निभाने।


धीरेन्द्र सिंह

05.05.2025

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