गुरुवार, 25 अप्रैल 2024

भोर बहंगी

 भोर भावनाओं की ले चला बहंगी

लक्ष्य कहार सा बन रहा सशक्त

वह उठी दौड़ पड़ी रसोई की तरफ

पौ फटी और धरा पर सब आसक्त


सूर्य आराधना का है ऊर्जा अक्षय

घर में जागृति, परिवेश से अनुरक्त

चढ़ते सूरज सा काम बढ़े उसका

आराधनाएं मूक हो रहीं अभिव्यक्त


भोर की बहंगी की है वह वाहक

रास्ते वही पर हैं ठाँव विभक्त

कांधे पर बहंगी और मुस्कराहट

भारतीयता पर, हो विश्व आसक्त


भोर भयी ले चेतना विभिन्न नई

बहंगी वही पर धारक है आश्वस्त

सकल कामना रचे घर चहारदीवारी

कर्म भोर रचकर यूं करती आसक्त।


धीरेन्द्र सिंह

25.04.2024


12.15