प्रेम मेरा बंध चुका है
वक़्त से वह नुचा है
वह कविताएं पढ़ती है
भाव ना कोई जुदा है
प्रेम कलश एक होता
ब्याह संग क्या जुड़ा है
परिणय दुनियादारी है
अवसर पा व्यक्ति मुड़ा है
दायित्वों का निर्वहन हो
ना लगे कोई लुटा है
कामनाएं निज जगे तो
कौन रिश्तों में मुदा है
क्षद्म जीवन, क्या मिले
अंतर्मन तुड़ा-मुड़ा है
आज भी है याद आती
मुंह मुझसे मुड़ा है।
धीरेन्द्र सिंह
18.04.2025
06.01