मंगलवार, 2 जनवरी 2024

आपकीं लाइक

 मेरी रचना इकाई न दहाई

आपकी लाइक से हर्षाई


अभिव्यक्ति में आसक्ति नहीं

शब्दों में मनयुक्ति नहीं

भावनाओं की है उतराई

आपकी लाइक से हर्षाई


मन उत्साहित है लेखन

शब्द अबाधित हैं खेवन

है रहस्य रचना तुरपाई

आपकीं लाईक से हर्षाई


सत्य ही साहित्य है

तथ्य ही व्यक्तित्व है

सर्जना की ऋतु अंगड़ाई

आपकी लाईक से हर्षाई


स्नेह की स्निग्धता आपूरित

मेघ की निर्द्वंदता समाहित

भावनाएं प्रवाहित छुईमुई

आपकी लाइक से हर्षाई।



धीरेन्द्र सिंह

03.01.2024

10.22

हयवदन

 तृषित नयन डूबे गहन करे आचमन

गहराई की गूंज रचे प्रक्रिया हयवदन


प्रगति की गति नहीं जो मति नहीं

निर्णय कैसा जहां उदित सहमति नहीं

द्वार-द्वार ऊर्जा की प्रज्ज्वलित अगन

गहराई की गूंज रचे प्रक्रिया हयवदन


दृष्टि गरज तो क्या दृष्टिकोण सरस

बदलियां घनी तो क्या व्योम जाए बरस

भ्रम रचित कर्म में युक्तियां गबन

गहराई की गूंज रचे प्रक्रिया हयवदन।


धीरेन्द्र सिंह

02.01.2024

18.10

चांद

 मन भावों की करने गहरी एक जांच

नववर्ष के प्रथम प्रहर निकला चांद


देख चांद मन बोला क्या तुम पाओगे

भाव जंगल मन में भटक थक जाओगे

यहां वेदना सघन कोई न पाता आंक

नववर्ष के प्रथम प्रहर निकला चांद


मनगामी अनुगामी तथ्यपूर्ण है कल्पना

सत्य अल्प अनुभूतियां बाकी है जपना

सब दोहरे हैं सबकी अपनी-अपनी मांद

नववर्ष के प्रथम पहर निकला चांद


क्या प्रतीक है यह और प्रकृति संदेश

ताक रहा भाव नयन से कोई विशेष

सरपंच सा व्योम क्या सुन रहा फरियाद

नववर्ष के प्रथम पहर निकला चांद।


धीरेन्द्र सिंह


02.01.2024

13.57