बुधवार, 11 जून 2025

शब्द कर्म

 चेतना को चुगने का प्रयास हो रहा

जो भी हो रहा है सायास हो रहा

उन्नत हैं बीज खेत लहलहा उठेंगे

खेतों में बीज न अनायास बो रहा


स्व विवेक मरेगा तो मरजायेगा स्वधर्म

वह मारने पर तुला है प्रकाश मिलेगा

तन मार गया तो मिलते हैं तन सगर्व

स्व आधार मारता है हताश मिलेगा


अब कर्म में बातों को ढालने लगे हैं

कर्मठता से ही अपना आकाश मिलेगा

सुंदर सुघड़ शब्द से बातें तो हैं आसान

जब धुनेगा रुई, कोमल एहसास मिलेगा


अस्तित्व के लिए सौम्य व्यक्तिव क्यों

शौर्य हो तो व्यक्तित्व उल्लास खिलेगा

कर्मों में शब्द ढलने से मिलता निदान

गुमान विगत का रहा तलाश मिलेगा।


धीरेन्द्र सिंह

12.06.2025

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