गेहूं की फसल खड़ी
पगडंडी अविराम है
कृषक कहां कृषकाय
खेती तो अभिमान है
फसलें भी हैं चित्रकारी
कृषि तूलिका तमाम हैं
अर्थव्यवस्था अनुरागी यह
खेत की मिट्टी धाम है
गांवों के सुंदर हैं घर
सभी सुविधाएं सकाम हैं
आंगन धूप, हवा आए
छत में जाली आम है
नहीं मोटापा नहीं बीमारी
माटी-मेहनत तान है
खुशहाली में है किसानी
अन्नदाता का सम्मान है।
धीरेन्द्र सिंह
22.04.2025
07.10