बुधवार, 12 अप्रैल 2023

क्यों श्रृंगार पर रचें

प्रेमिका प्रेमी यदि अपना भगा दे

विखंडित हो ही जाती संलग्नता

विगत जुगनू सा चमका लगे तो

चाह हंसती समाए कुरूप नग्नता


समर्पण करनेवाला करे जब तर्पण

वायदों की चिता सी हो निमग्नता

एक टूटन बिखरने लगे परिवेश भर

व्योम तपने लगे पा राख की दग्धता


कोई दूजा बना अपना, मिल जपना

खपना एक-दूजे की, तन सिक्तता

पाला बदलते, जो करे प्यार अक्सर

छपना देह पर, खुश देख दिल रिक्तता


भावशून्य भी जलते हैं, अलाव बहुत

चर्चे में यही, अलाव रचित स्निग्धिता

तपन का तौर, निज संतुष्टि साधित

दहन में दौर, भाव ग्रसित विरक्तिता


हृदय हारा हुआ सैनिक सा गुमसुम कहीं

तन लगे विजयी सम्राट की लयबद्धता

क्यों श्रृंगार पर रचें रचनाकार सब

भ्रमित राह पर जब प्रीत की गतिबद्धता।


धीरेन्द्र सिंह

11.04.2023

13.36

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