बुधवार, 12 अप्रैल 2023

तृषा की चीख

 तृषा की चीख को जल सुनता नहीं

जलाशय बन रहे कोई गिनता नहीं


बयानबाजी में चर्चित रही प्यास खूब

नमी आंखों की रोई कोई कहता नहीं


सावन ने मचाया शोर दे आश्वासन कई

पावन बूंद ना टपकी कहें समझा नहीं


नदियां भी गयी सूख खेती है पड़ी सूनी

पूजा अर्चनाएं बीती गगन बरसा नहीं


कई झंडों में हुई विभाजित यह बस्ती

तृष्णा तृप्ति व्याकुल कोई जंचता नहीं।


धीरेन्द्र सिंह

04.04.2023

18.14

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें