बुधवार, 12 अप्रैल 2023

पाजी नयन

 गुलाल फेंक पलकों में छुप गयी अंखिया

कहां से भींग आयी बोल पड़ी सब सखियां


एक सिहरन एक चिंतन में लिपटी हुई थी

बात उड़ने लगी रंग ली तो पक्की अंगिया


गुदगुदी कर सताने लगे वह पाजी नयन

गगन को रंगने लगी तन्मयी मन बतिया


चेहरे पर नई चमक सदाबहार यह मुस्कान

एक पल ने रंग दी कब प्यारी सी दुनिया


लोग कहने लगे तितली सी क्यों उड़ने लगी

इश्क़ महकने को कहां उम्र थीं मजबूरियां।


धीरेन्द्र सिंह

05.04.2023

06.19

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