फफनते हुए दूध
उफनते हुए मन
दोनों को चाहिए
शीतल छींटे,
क्या होगा जब दिखें व्यस्त
आंखें मींचे,
यह परिवेश पूर्ण जोश
लगे हैं आंख मीचे खरगोश
ऐसा क्यों होता है
गौरैया का कहां खोता है,
यह कैसी रचना रीत
अनगढ़ सी हो प्रतीत,
लिखी जा रही हैं असंख्य
नित हिंदी कविताएं,
रचना से बड़ा अपना चेहरा
बड़ा कर दिखाएं,
नई चलन समूहों की
फफने चेहरा उफने क्रीत;
हिंदी फ़फ़न रही है
अभिलाषाएं उफन रही है,
गौरैया बिन घोसला
मुंडेर और बालकनी तलाश रही,
किसने चलाई यह भीत
शीतल छींटे रुके किस रीत।
धीरेन्द्र सिंह
07.11.2024
19.21
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