गुरुवार, 7 नवंबर 2024

बना की मस्तियां

 अद्भुत, असाधारण, अनमोल हस्तियां

समझ का ठीहा है बनारस की मस्तियां


अपनी ही धुन के सब अथक राही

हर जगह मस्त शहर, गांव या पाही

यहां बिना न्याय उडें न्याय अर्जियां

समझ का ठीहा है बनारस की मस्तियां


थोड़ी सी ऐंठन थोड़ा सा है चुलबुला

आक्रामक बाहर दिखे भीतर रंग खिला

बातें बतरंग बहे बेरंग गली और बस्तियां

समझ का ठीहा है बनारस की मस्तियां


अबीर-गुलाल सा कमाल भाल हाल

बांकपन में लचक प्रेम की नव ताल

खिलखिलाहट नई आहट चाहतिक चुस्तियाँ

समझ का ठीहा है बनारस की मस्तियां।


धीरेन्द्र सिंह

08.11.2024

12.07

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