बुधवार, 18 जून 2025

आँचल

 छुपा लो मुझे अपने आँचल में मुझको

मुझे माँ की आँचल की याद आ रही है

छोड़ो रिश्ते की दुनिया की यह सब बातें

कहो आँचल यह हां तड़पन छुपा रही है


नारी जब भी देखा मातृत्व शक्ति पाया

प्रेयसी हो तो क्या, मुक्ति बुला रही है

यदि न हो नारी किसी रूप में जुड़ी तो

लगे जिंदगी रिक्त झूले झूला रही हो


मैं सच कहूँ तो मान लोगी कहो ना

मातृत्व भाव आँचल घुला रही है

देहगंध ही भ्रमित कर बहकाए हरदम

कहो न निष्भाव आँचल बुला रही है।


धीरेन्द्र सिंह

18.06.2025

17.41

शाम की चर्चा

 विषय भी मेरा, वक्ता भी चयनित

संचालन खुद का, होता है नित


होते ही शाम सज जाते चैनल

कुछ सार्थक कुछ जोड़ें पैनल

भाव आक्रामक भाषा अमर्यादित

संचालन खुद का, होता है नित


श्रवण इंद्रियों की गहन हो परीक्षा

बोलते वक्ता रहें शोर उपजे सदीक्षा

संचालन प्रायः नहीं होता संयमित

संचालन खुद का, होता है नित


चल राजी चर्चा चैनल सभी व्यस्त

वही प्रवक्ता अपनी बातों में मस्त

सरदर्द हो तो कमजोर सहन शक्ति

संचालन खुद का, होता है नित


कई चैनल करते है बड़ा मनोरंजन

कई वक्ता खुद का करें अभिनंदन

कभी हास्य फूटता कभी मृदुल स्मित

संचालन खुद का, होता है नित।


धीरेन्द्र सिंह

18.06.2025

18.19

मंगलवार, 17 जून 2025

तत्व और भाव

 तत्व की तथ्यता यदि है सत्यता

भाव की भव्यता कैसी है सभ्यता

तत्व और भाव अंतर्द्वंद्व जीवन के

रचित जिस आधार पर है नव्यता


अपरिचित भी लगे सुपरिचित सा 

परिचित में ना मिले ढूंढे ग्राह्यता

अनजाने पथ पर पांव अथक चलें

राह परिचित प्रति कदम मांगे द्रव्यता


तत्व का एक रूप है जो जगभासी

भाव है अमूर्त गूढ़ अनुभवी तथ्यता

हर किसी का भाव सिंचित है पुष्पित

तत्व प्रदर्शन मात्र नेपथ्य की आर्द्रता


भाव यदि सक्रिय नहीं व्यक्ति हो कहीं

तत्व की सतह पर तलाशता अमर्त्यता

भाव ही तत्व का है मूल ईंधन जग में

भाव ही प्यार और प्यार में है सार्थकता।


धीरेन्द्र सिंह

18.06.2025

08.16




शब्द ले गया

 कोई मेरा शब्द ले गया भावों के आंगन से

निर्बोला सा रहा देखता झरझर नयना सावन से

कुछ ना बोली संग अपनी टोली चुप हो ली

यहां हृदय उत्कीर्ण रश्मियां लिपटी हवन पावन से


शुद्ध हो गयी निर्जल आंखें अकुलाई थी बाहें

सृजन नया कुछ सोचा था सूखा किस छाजन से

प्रणय आग भीतर नहीं सृजन कहां हो पाता है

दो पुस्तक मिल किए प्रकाशित मुद्रण की मांगन से


टोली टूटी वह भी टूटी सत्य कुछ लिख डाला

पुस्तक मेला वर्चस्व रहे बुक स्टाल के बाभन से

दोहा, माहिया लिखनेवाला मंच का लालच दे डाला

कौन कहां है पूछता प्यार के छिपे जामन से


शब्द मेरे और भाव भी मेरे नित सुनती थी मुग्धा

साहित्यिक जीवन बातें एक वर्ष चला पावन से

साहित्यिक प्रणय सुदूर से दो वर्ष चला नियमित

मेरे शब्दों से जहान बना ली उत्कर्ष पागन से।


धीरेन्द्र सिंह

18.06.2025

03.27



रविवार, 15 जून 2025

प्यार न बदला

प्यार ऐसे ही रहा है शुष्कता न सलवटें

यार जो एक बार हुआ छूटता न करवटें

वह हसीन वादियों को कल्पना के रंग दें

मन के बादलों में होती सावनी कबाहटें


जग चला जग छला है प्यार का वलवला है

जलजला में हैं प्यारमुखी पुष्पलता चौखटें

मन का सांखल चढ़ा उत्सवी मन काफिले

चाहत की संदूक में हैं समर्पित कुछ हौसले


क्या बदला कुछ न बदला बदल गया समय

प्यार ठाढ़े टुकटुकी अभिव्यक्ति के नव फैसले

अब भी शरमाहट भर सकुचाते बदन भवन

उन्माद सतही दौड़ता एहसास गहरा नौलखे।


धीरेन्द्र सिंह

16.06.2025

12.09




शनिवार, 14 जून 2025

लेखन छेड़खानी

यूं ही कुछ लेखन लिए कद्रदानी

अक्सर करता है लेखन छेड़खानी


आवश्यक नहीं पहल करे रचनाकार

कुछ प्रबुद्ध टिप्पणी शाब्दिक चित्रहार

शब्दों की भावहोली रचती नव कहानी

अक्सर करता है लेखन छेड़खानी


उच्च बौद्धिकता में होती छेड़-छाड़

शाब्दिक सुंदरता भावों के फले ताड़

लूटते हैं लोग करते शब्दों की निगरानी

अक्सर करता है लेखन छेड़खानी


ऐसी चंचलता, चपलता चतुर लेखन

किसी भी समूह का पुलकित संवेदन

लेखन की लौकिकता लेखन जुबानी

अक्सर करता है लेखन छेड़खानी।


धीरेन्द्र सिंह

14.06.2025

18.33



 

शुक्रवार, 13 जून 2025

आपका लेखन

 लिख-लिखकर लुभाई हैं, हिसाब दीजिए

सभी पात्र हों प्रसन्न वह किताब दीजिए


परिपक्वता के लेखन में है अद्भुत मिठास

भाव भव्यता के खेवन में है शब्दयुक्त ठाठ

अभिव्यक्त हो प्रखर अनुभव नवाब दीजिए

सभी पात्र हों प्रसन्न वह किताब दीजिए


आपके लेखन में मेरी भावनाओं का गुबार

सुंदर शब्द आपके है और लिपटे सुविचार

प्रश्न मैं उत्तर आप हैं उपयुक्त जवाब दीजिए

सभी पात्र हों प्रसन्न वह किताब दीजिए


प्रत्यक्ष कैसे बोलूं सामाजिक मर्यादाएं हैं खड़ी

आपका लेखन है जादुई एक मंत्र की पड़ी

मंत्र पढूं कान फूंक वह आफताब दीजिए

सभी पात्र हों प्रसन्न वह किताब दीजिए


पढ़ना है मेरी आदत हर व्यक्तित्व है पुस्तक

जब से रहा पढ़ आपको हर शब्द है दस्तक

लिखते रहिए करते मोहित विवाद दीजिए

सभी पात्र हों प्रसन्न वह किताब दीजिए।


धीरेन्द्र सिंह

14.06.2025

06.26




गुरुवार, 12 जून 2025

बोइंग अहमदाबाद

 सब चैनल की एक ही बातें

बोलें बाद में पहले तो जांचे


अहमदाबाद ड्रीमलाइनर हादसा

अग्निपाश 242 आत्मा आसका

दुर्घटना या षड्यंत्र मन नाचे

बोलें बाद में पहले तो जांचे


संयत सुलझा संशोधित समाचार

एक जीवित यात्री मिला चमत्कार

कुछ यात्री और हों जीवित मांगे

बोलें बाद में पहले तो जांचे


इलेक्ट्रॉनिक नियंत्रण कर है हमला

एक भाव कहे लोग बोलें पगला

बोल ऐसा भय यूं न टांगे

बोलें बाद में पहले तो जांचे


मेरी भी संग करोड़ श्रद्धांजलि

यात्री परिजन संग हों बजरंगबली

उड़ा जहाज कैसे मौत नाचे

बोलें बाद में पहले जांचे।

🙏🏻

धीरेन्द्र सिंह

12.06.2025

18.57



बुधवार, 11 जून 2025

शब्द कर्म

 चेतना को चुगने का प्रयास हो रहा

जो भी हो रहा है सायास हो रहा

उन्नत हैं बीज खेत लहलहा उठेंगे

खेतों में बीज न अनायास बो रहा


स्व विवेक मरेगा तो मरजायेगा स्वधर्म

वह मारने पर तुला है प्रकाश मिलेगा

तन मार गया तो मिलते हैं तन सगर्व

स्व आधार मारता है हताश मिलेगा


अब कर्म में बातों को ढालने लगे हैं

कर्मठता से ही अपना आकाश मिलेगा

सुंदर सुघड़ शब्द से बातें तो हैं आसान

जब धुनेगा रुई, कोमल एहसास मिलेगा


अस्तित्व के लिए सौम्य व्यक्तिव क्यों

शौर्य हो तो व्यक्तित्व उल्लास खिलेगा

कर्मों में शब्द ढलने से मिलता निदान

गुमान विगत का रहा तलाश मिलेगा।


धीरेन्द्र सिंह

12.06.2025

05.54

मंगलवार, 10 जून 2025

आंतरिक ऊर्जा का उन्नयन धार है

प्रचंड वेगवाहक होता जब प्यार है


धरा से व्योम तक भावना का अर्चन

प्यार की छवि दिखे वायु बने दर्पण

ऐसे योगियों समक्ष खुले सब द्वार हैं

प्रचंड वेगवाहक होता जब प्यार है


सामाजिक बंधन कहे प्यार है चंदन

सामाजिक समर्थन प्यार वही वंदन

वैवाहिक रीतियों में नियम गुबार है

प्रचंड वेगवाहक होता जब प्यार है


धर्म कभी कर्म कभी सामाजिकता

प्यार नियमबद्ध करे क्या आतुरता

बिरादरी से बाहर ब्याह नहीं शुमार है

प्रचंड वेगवाहक होया जब प्यार है


प्यार नहीं रुकता प्रेमी प्रतिदिन आदि

नित्य मिलान नित्य चर्चा पल-पल संवादी

दूसरे से ब्याह नहीं देता प्यार झंकार है

प्रचंड वेगवाहक होता जब प्यार है।


धीरेन्द्र सिंह

11.06.2025

05.46


रविवार, 8 जून 2025

नीना गुप्ता

 नीना गुप्ता

बीते

66वें जन्मदिवस की

हार्दिक शुभकामनाएं,

पूर्ण अपरिचित हैं

एक-दूसरे के लिए

बस इतना जाना

मीडिया ने जो बताया,


आजकल भी 

मीडिया बता रही है

आपके 66वें जन्मदिन का

केक काटता फोटो

कुछ लोग कहें हो, हो,


सोशल मीडिया

एक वैचारिक प्रवाह है

जहां स्वतंत्र है अभिव्यक्ति

करे कोई भी व्यक्ति

चीखता, चिल्लाता

विचार अपने सत्य बतलाता

निरंतर कहते जाता

जैसे सरिता प्रवाह में

खर-पतवार है बहते जाता,

वैचारिक और सामाजिक प्रवाह

धारित किए आप

चल रही हैं कलकल

एक सरिता की तरह, जिसमें

कतिपय मृत विचार और तर्क

बह रहे पकड़ आपका संग,


आप यूं ही 

प्रवाहित होते रहिए

इतिहास आपके सम्मान में

अपने रिक्त रखे पृष्ठों में 

आपकी जिंदगी समेटने को

सक्रिय है

क्योंकि

अपनी शर्तों पर

एक पूरा जीवन जी पाना

मात्र साहस नहीं बल्कि

एक विलक्षण दृष्टिकोण है।


धीरेन्द्र सिंह

08.06.2025

19.54







व्यक्तित्व

 लोग झूठ बोलते हैं शायद डर गए हैं

व्यक्तित्व रुपहला भीतर से मर गए हैं

देखा है जमाने की भीतर की दुनिया

बाहर क्षद्म रूप और वह तर गए हैं


एक परदा जरूरी है जहां कुछ पड़ा

हरे कपड़े से बालकनी भी ढक गए है

हर कुछ छुपाना भयभीत है जमाना

निजता के कमरे क्या-क्या भर गए हैं


मन दबा आवाज दबी हौसला लगे दबा

रीढ़ की हड्डी दबी यूं ही अड़ गए हैं

कहते हैं शांत रहिए समय होगा परिवर्तित

हम क्या रट लिए और क्या पढ़ गए हैं


उन्माद न दबंगता अन्याय का हो विद्रोह

शालीनता में शांत गलत राह बढ़ गए हैं

साहित्यिक, सामाजिक सुधार आवश्यक

धूल-धक्कड़, जंग व्यक्तित्व चढ़ गए हैं।


धीरेन्द्र सिंह

08.06.2025

18.10




शनिवार, 7 जून 2025

चर्चा

 साहित्य का विकास एवं उन्नयन

सक्रिय पठन हो दीप्ति भरे गगन


पढ़ लिया फिर लाईक या टिप्पणी

ऐसे विभिन्न रचनाओं पर दो घड़ी

प्रश्न पूछिए जहां संशय भरे गहन

सक्रिय पठन हो दीप्ति भरे गगन


पाठक वर्ग होता है साहित्य चितेरा

उनके दिशानिर्देश रचें साहित्य सवेरा

रचना पर हो चर्चा रहे रचना मगन

सक्रिय पठन हो दीप्ति भरे गगन


कविता पर मिले कविता में प्रतिक्रिया

रचना के शब्द, वाक्य पर प्रश्न क्रिया

कितना सुखद होता लेखन करे मनन

सक्रिय पठन हो दीप्ति भरे गगन।


धीरेन्द्र सिंह

07.06.2025

22.43




शुक्रवार, 6 जून 2025

लाईक कमेंट्स

 लेखन कितना क्षुब्ध हो गया

चाहे हरदम खुश इठलाने को

लाईक, टिप्पणियों के अधीन

सर्जना लगे सुप्त बिछ जाने को


रचनाकार सशक्त सजीव संजीव

रचना मन अंगना खिल जाने को

मिलते रहते पाठक और प्रशंसक

रचना गुणवत्ता ओर खींच जाने को


सर्जन का है कर्म-धर्म अभिव्यक्ति

लेखन का स्वभाव मन छू जाने को

पाठक प्रशंसक के अधीन यदि लेखन

प्रथम संकेत है लेखन चुक जाने को


एक विचार हो एक प्रवाह हो लेखक

है कर्म निरंतर लेखन जग जाने को

एक चुम्बक है लेखन सबको ले खींच

लाईक, कमेंट्स में क्यों उलझ जाने को।


धीरेन्द्र सिंह

07.06.2025

05.39





गुरुवार, 5 जून 2025

उम्र

 प्यार यदि देह है फिर क्या नेह है

कुछ भी संभव कहीं भेद लिए देह है


एक उम्र आते ही कहते बस हुआ

ईश्वर की भक्ति करो उम्र को छुआ

देह तो तब भी प्यार करना खेद है

कुछ भी संभव कहीं भेद लिए देह है


प्यार पर लिख रहे उम्र भी तो देखिए

लोग क्या कहेंगे गरिमा के जो भेदिए

लेखन में पड़े कुछ करते नहीं गेय है

कुछ भी संभव कहीं भेद लिए देह है


अधेड़ उम्र में प्यार क्यों हैं करते

भक्ति लो मुक्ति लो अचानक हैं मरते

परलोक की सोचें देह नश्वर विदेह है

कुछ भी संभव कहीं भेद लिए देह है।


धीरेन्द्र सिंह

06.06.2025

10.21


बुधवार, 4 जून 2025

क्रिकेट हादसा

 गेंद लेकर दौड़ता एक गेंदबाज

बल्ला चाहे गेंद को दे गति साज


गेंदबाज, बल्लेबाज और क्षेत्ररक्षक

एक विजयी दूजी टीम बनी समीक्षक

बंगलुरू स्टेडियम में जश्न की आवाज

बल्ला चाहे गेंद को दे गति साज


आरसीबी टीम अठारह वर्ष बाद जीत

स्टेडियम द्वार भगदड़ निकली कई चीख

स्टेडियम में  चलता रहा जश्न लिए नाज़

बल्ला चाहे गेंद को दे गति साज


मर गए घायल हुए कई क्रिकेट प्रेमी

कौन दोषी मुक्तभोगी था संयोग नेमी

चैनलों के वीडियो दर्शाते चूक व काज

बल्ला चाहे गेंद को दे गति साज


ना रुकी भगदड़ में मौत व भारी चोट

स्टेडियम में उत्सव बाहर व्यवस्था खोट

क्रिकेट जगत का दुखदाई हादसा माँज

बल्ला चाहे गेंद को गति दे साज।


धीरेन्द्र सिंह

04.06.2025

18.48

सोमवार, 2 जून 2025

अर्थपूर्ण

 एक बात कहूँ आप यूं ना सोचिए

हर बात अर्थपूर्ण कहां होती है

एक समीक्षक की तरह ना देखिए

हर नात गर्भपूर्ण कहां ज्योति है


समझौता ही एकमात्र है विकल्प

जिंदगी स्वप्न जैसी कहां होती है

शोधार्थी की तरह जारी रहे शोध

बंदगी, यत्न ऐसी जहां रीति है


टूटते तारे हों तो है चमकता रिश्ता

रोशनी खास अब यहां कहां होती है

अंधेरा भर रहा धुआं बन सीने में

सुलगन अब कहाँ आग लिए होती है


हर चेहरे पर संतुष्टि का है मेकअप 

चेहरे पर खिली चांदनी कहां होती है

कहिए कि नकारात्मक सोच का लेखन

चहकना सीख ले जिंदगी वहीं होती है।


धीरेन्द्र सिंह

03.06.2025

09.12



रविवार, 1 जून 2025

चश्मा

 तुम भी मुझे उतार दी चश्मा की तरह

लेन्स कमजोर लग रहा था हर शहर


कहा कि साफ कर लो धूल है बहुत

नई चाह में बीमार सा घूमे दर बदर


मारा कुछ छींटे धूल लेंस से तो हटे

गर्दन घुमा लिया तुमने जैसे हो डगर


हर तन कमजोर हो अक्सर नहीं होता

मन भटक चला था बिना अगर-मगर


क्या कर लिया हासिल कुछ तो न दिखे

बवंडर से जा जुड़े उड़ान के कुछ पहर


लिख रहा हूँ तुमको याद जो आ गयी

चश्मा के लेंस संग झांकती वही नजर।


धीरेन्द्र सिंह

02.06.2025

09.55



यह लोग

 यह लोग जो संस्कार की बात करते हैं

जाने शोर किस अधिकार की करते हैं


प्यार यदि छलक सतह पर है निखरता

यही लोग प्यार का धिक्कार करते हैं


यह कभी लगा नहीं शुष्क मन इनका

मनोभावों में यह भी श्रृंगार करते हैं


सारा संस्कार प्यार रचित बातों पर ही

संस्कार बांधकर क्यों व्यवहार करते हैं


भ्रष्टाचार, झूठ बोलना, डीपी गलत लगा

व्यक्तित्व मुखौटा अस्तित्व नाद करते हैं


ईश्वर भी है प्यार तो प्यार भी है ईश्वर

नश्वर बारंबार नव ईश्वर पुकार करते है।


धीरेन्द्र सिंह

01.06.2025

13.00