बुधवार, 18 जून 2025

आँचल

 छुपा लो मुझे अपने आँचल में मुझको

मुझे माँ की आँचल की याद आ रही है

छोड़ो रिश्ते की दुनिया की यह सब बातें

कहो आँचल यह हां तड़पन छुपा रही है


नारी जब भी देखा मातृत्व शक्ति पाया

प्रेयसी हो तो क्या, मुक्ति बुला रही है

यदि न हो नारी किसी रूप में जुड़ी तो

लगे जिंदगी रिक्त झूले झूला रही हो


मैं सच कहूँ तो मान लोगी कहो ना

मातृत्व भाव आँचल घुला रही है

देहगंध ही भ्रमित कर बहकाए हरदम

कहो न निष्भाव आँचल बुला रही है।


धीरेन्द्र सिंह

18.06.2025

17.41

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