यह प्रदर्शन, इस रुतबा का औचित्य क्या
प्रसिद्धि का लंबा है कहीं व्यक्तित्व क्या
कुछ तो इतिहास में जाते हैं खूब पढ़ाए
सत्य क्या है यह प्रायः समझ ना आए
एक वर्ग में लिए दर्प उंसमें निजत्व क्या
प्रसिद्धि का लंबा है कहीं व्यक्तित्व क्या
वसुधैव कुटुम्बकम में भी हैं अनेक कुनबे
शालीनता उनमें नहीं एक-दूजे को सुन बे
संबोधन, संपर्क में है बो दिया विष क्या
प्रसिद्धि का लंबा है कहीं व्यक्तित्व क्या
एक बुलबुले से उफन रहे हैं ख्याति प्रेमी
अल्पसमय में सपन हो रहे हैं चर्चित नेमी
जीवन सहज सुगंधित खोए सामीप्य क्या
प्रसिद्धि का लंबा है कहीं व्यक्तित्व क्या।
धीरेन्द्र सिंह
26.03.2025
08.07
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