बुधवार, 26 मार्च 2025

सीखचों

 सीखचों से मैं घिरा आप क्या आजाद हैं

खींच तो हैं सब रहें पर मुआ जज्बात है


पल्लवन की आस में झूमती हैं डालियां

कलियां रहीं टूट अर्चना की तो बात है


व्यक्ति पंख फड़फड़ाता पिंजरे के भीतर

कौन कहता हर संग नभ का नात है


मनचाहा सींखचे कुछ दिन लुभाती रहें

बंधनों के दर्द में जपनाम ही नाथ है


जो बचता सींखचों से दीवाना कहलाता

जिंदगी की क्या कहें बंदगी हालात हैं।


धीरेन्द्र सिंह

27.03.2025

08.26

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें