सीखचों से मैं घिरा आप क्या आजाद हैं
खींच तो हैं सब रहें पर मुआ जज्बात है
पल्लवन की आस में झूमती हैं डालियां
कलियां रहीं टूट अर्चना की तो बात है
व्यक्ति पंख फड़फड़ाता पिंजरे के भीतर
कौन कहता हर संग नभ का नात है
मनचाहा सींखचे कुछ दिन लुभाती रहें
बंधनों के दर्द में जपनाम ही नाथ है
जो बचता सींखचों से दीवाना कहलाता
जिंदगी की क्या कहें बंदगी हालात हैं।
धीरेन्द्र सिंह
27.03.2025
08.26
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