मंगलवार, 25 मार्च 2025

प्रेमिकाएं

 कौंध जाती हैं हृदय की लतिकायें

कौन जाने क्या झेली हैं प्रेमिकाएं


भावनाओं का तूफान लिए चलती हैं

आंधियों में भी मासूम सी ढलती हैं

हृदय पर हैं उनकी अमिट कृतिकाएं

कौन जाने क्या झेली हैं प्रेमिकाएं


जब भी मिली अनायास अकस्मात

जैसी हों सावन की पहली बरसात

प्रणय की दिखा गईं कई शिखाएं

कौन जाने क्या झेली हैं प्रेमिकाएं


सब अकस्मात हुआ बात-बेबात सा

कब साक्षात हुआ एक पहल पा

लिखने लगा जीवन प्रेम की ऋचाएं

कौन जाने क्या झेली हैं प्रेमिकाएं


यह जग की बात नही अपनी बात

क्षद्म, धोखा कहीं ऐसे नहीं हालात

अनपेक्षित सामनाओं की वीरांगनाएं

कौन जाने क्या झेली हैं प्रेमिकाएं।


धीरेन्द्र सिंह

24.03.2025

21.19



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