कौंध जाती हैं हृदय की लतिकायें
कौन जाने क्या झेली हैं प्रेमिकाएं
भावनाओं का तूफान लिए चलती हैं
आंधियों में भी मासूम सी ढलती हैं
हृदय पर हैं उनकी अमिट कृतिकाएं
कौन जाने क्या झेली हैं प्रेमिकाएं
जब भी मिली अनायास अकस्मात
जैसी हों सावन की पहली बरसात
प्रणय की दिखा गईं कई शिखाएं
कौन जाने क्या झेली हैं प्रेमिकाएं
सब अकस्मात हुआ बात-बेबात सा
कब साक्षात हुआ एक पहल पा
लिखने लगा जीवन प्रेम की ऋचाएं
कौन जाने क्या झेली हैं प्रेमिकाएं
यह जग की बात नही अपनी बात
क्षद्म, धोखा कहीं ऐसे नहीं हालात
अनपेक्षित सामनाओं की वीरांगनाएं
कौन जाने क्या झेली हैं प्रेमिकाएं।
धीरेन्द्र सिंह
24.03.2025
21.19
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