अदा है या गुस्सा नहीं बोलोगी
लब पर है शबनम नहीं खोलोगी
चंचल हृदय की चंचल हैं बातें
अचल क्यों रहें तरंगे ही बाटें
यूं खामोशियों में सबब तौलोगी
लब पर है शबनम नहीं खोलोगी
संदेशों पर संदेशे हृदय ने भेजकर
कामनाओं को लपेटा है सहेजकर
दिन बीत गया सोचते अब छुलोगी
लब पर है शबनम नहीं खोलोगी
यह शबनम तो नहीं है नियंत्रण
ताकीद मृदुल क्या नहीं आमंत्रण
उलझन में कब तक यूं तलोगी
लब पर है शबनम नहीं खोलोगी।
धीरेन्द्र सिंह
23.03.2025
19.10
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