सोमवार, 24 मार्च 2025

अदा

 अदा है या गुस्सा नहीं बोलोगी

लब पर है शबनम नहीं खोलोगी


चंचल हृदय की चंचल हैं बातें

अचल क्यों रहें तरंगे ही बाटें

यूं खामोशियों में सबब तौलोगी

लब पर है शबनम नहीं खोलोगी


संदेशों पर संदेशे हृदय ने भेजकर

कामनाओं को लपेटा है सहेजकर

दिन बीत गया सोचते अब छुलोगी

लब पर है शबनम नहीं खोलोगी


यह शबनम तो नहीं है नियंत्रण

ताकीद मृदुल क्या नहीं आमंत्रण

उलझन में कब तक यूं तलोगी

लब पर है शबनम नहीं खोलोगी।


धीरेन्द्र सिंह

23.03.2025

19.10



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