ब्लॉक करके भी खुल भूलते नहीं
याद आते हैं उनकी अदा तो नहीं
ब्लॉक कर दिया ढिंढोरा पीटे खूब
छपी किताबें जो वह धता तो नहीं
मास मीडिया को कर दिए निष्क्रिय
भय उनका अन्य की खता तो नहीं
अपनी गलतियों को भला देखे कौन
लहू निकला कहें कुछ किया ही नहीं
हुलसती चाहतें सब तोड़ने को आमादा
जो जोड़ा है नया उतना जंचा ही नहीं
मसखरी खरी-खरी भरती थी कड़वाहटें
उसको छोड़ा तो लगा अब जमीं ही नहीं
लौट आए फिर साहित्य सजाने खातिर
मंच पर पीछे खड़े बात वह ही नहीं
हिंदी साहित्य के मंचों पर लौट आए
हिंदी जगत सा कहीं यह होता भी नहीं।
धीरेन्द्र सिंह
22.03.2025
17.22
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