शनिवार, 22 मार्च 2025

लौट आए

 ब्लॉक करके भी खुल भूलते नहीं

याद आते हैं उनकी अदा तो नहीं

ब्लॉक कर दिया ढिंढोरा पीटे खूब

छपी किताबें जो वह धता तो नहीं


मास मीडिया को कर दिए निष्क्रिय

भय उनका अन्य की खता तो नहीं

अपनी गलतियों को भला देखे कौन

लहू निकला कहें कुछ किया ही नहीं


हुलसती चाहतें सब तोड़ने को आमादा

जो जोड़ा है नया उतना जंचा ही नहीं

मसखरी खरी-खरी भरती थी कड़वाहटें 

उसको छोड़ा तो लगा अब जमीं ही नहीं


लौट आए फिर साहित्य सजाने खातिर

मंच पर पीछे खड़े बात वह ही नहीं

हिंदी साहित्य के मंचों पर लौट आए

हिंदी जगत सा कहीं यह होता भी नहीं।


धीरेन्द्र सिंह

22.03.2025

17.22

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें