खयाल अपने बदलकर वह जवाब हो गए
करने लगे चर्चा कि हम बेनकाब हो गए
जब तक चले थे साथ, भर विश्वास हाँथ
बुनते गए खुद को, देता रहा हर काँत
पहचान मिली, सम्मान यूं आबाद हो गए
करने लगे चर्चा कि हम बेनकाब हो गए
हृदय से जुड़कर रहे निरखते भाव-भंगिमाएं
प्रणय तन तक है छलकते वह समझाएं
दिल से दिल से जो जुड़े, जज्बात हो गए
करने लगे चर्चा कि हम बेनकाब हो गए
हसरतों में उनके रहीं हैं बेसबब वीरानियाँ
रचते गए बेबाक जिंदगी की सब कहानियां
अब दौर यही भूत के सब असबाब हो गए
करने लगे चर्चा कि हम बेनकाब हो गए।
धीरेन्द्र सिंह
30.12.2024
13.05
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