पग बढ़ा अंगूठे से खींचती हैं क्यारी
लक्ष्मण रेखा के बिना बढ़ती ना नारी
चाह है, राह है, उमंगों की घनी छांह
उठती, उड़ती रुक जाती है सिकोड़ बांह
हाँथ होंठों पर रखी जब भावना किलकारी
लक्ष्मण रेखा के बिना बढ़ती ना नारी
क्या बुरा है क्या भला है नारीत्व में पला
संस्कृति और संस्कार इनका, जग है ढला
संरचना यही संरचित यही लगें सर्वकार्यभारी
लक्ष्मण रेखा के बिना बढ़ती ना नारी
लखि उपवन दृग चितवन भावनाएं गहन
जो सोचें पूरा न कहें मर्यादाओं के सहन
खंजन नयन कातिल मुस्कान लगें हितकारी
लक्ष्मण रेखा के बिना बढ़ती ना नारी।
धीरेन्द्र सिंह
16.12.2024
16.07
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें