चुइंग गम की तरह
तुम्हें चुभलाता मस्तिष्क
कभी नही कहता
है इश्क़
और
तुम भी भला कैसे बोलो
है मर्यादा का घूंघट,
मन मनन करता
छनन छनन करता
कल्पनाएं करता
चुभलाता है चुइंग गम
और
तुम घुमड़ती बदली
ना तब ना अब बदली,
क्या भारतीय प्यार
नहीं लिए आधार
वात्स्यायन की खोज
खजुराहो बिन दोष
कोणार्क पुरजोश
हैं सांस्कृतिक धरोहर ?
भारतीय संस्कृति और संस्कार
नृत्यमय राग विभिन्न प्यार
दैहिक कम अधिक आत्मिक उद्गार
रहती जिंदगी संवार
रहित विभिन्न व्यभिचार
यही हमारा देश
यही शांति मुक्ति द्वार,
सहमत हो तो चलो
नई रीति राग जगाएं
प्यार नवपरिभाषित बनाएं
मुखरित हों बिन विभेद
बस और नहीं
चुइंग गम चबाएं।
धीरेन्द्र सिंह
02.11.2024
11.13
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