गुदगुदाती अनुभूतियां
कल्पनाओं में रच
दर्शाती है मुद्राएं
करती है थिरकन
तब सजा देता है भाव
विभिन्न प्रतीक, बिम्ब से,
आप भी होती हैं पुलकित
पढ़ कर उसे
गढ़ कर खुदसे,
जैसे होता मन
अभिव्यक्तियों में गूंथ
आप को लिखने से;
खिल जाता है साहित्य
निखर जाता है कवित्व
रचना बोल पड़ती है,
रचनाकार है
पाठक और पाठिका हैं
और हैं
आप;
कविता बहती रहती है
छू लेने को कभी
साहित्य।
धीरेन्द्र सिंह
03.11.2024
20.10
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