शांत थी मेरी सुबह की सड़क
बरस ही रहा था झूमता सावन
बहुत दूर से देखा तुम आ रही
यही होता मन मौसम हो, पावन
समुद्री हवा के छाता पर थे थपेड़े
या सोच तुमको चहक उठा सावन
मोबाइल में चाहा करूं कैद तुमको
कहां फिर मिलेगा क्षण मनभावन
सड़क पर था बूंदों का मुक्त नर्तन
सड़क थी खाली तुम्हारा था आगमन
मन की लहर पर बढ़ रहे थे कदम
तुमको सोचा और बहक खिला मन।
धीरेन्द्र सिंह
05.08.2024
15.06
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