रविवार, 4 अगस्त 2024

इस सावन

 कोई शगुन हो कोई अब करामात हो

इस सावन भींगे मन, ऐसी बरसात हो


बदलियां हंसती-मुस्काती उड़ जाती है 

पवन झकोरों को धर सुगंध भरमाती है 

कभी तो लगे बदली आंगन अकस्मात हो

इस सावन भींगे मन, ऐसी बरसात हो


पौधे घर के झूम रहे लग रहे प्रफुल्लित

औंधे लेटे सोचें बदरिया घेरे मन उल्लसित

मन बौराया सावन में भले ही अपराध हो

इस सावन भींगे मन, ऐसी बरसात हो


साथी थाती बाती बारे उजियारा सावन

भोले भंडारी को हो जलाभिषेक पावन

अभिलाषाओं का कावंड़ आशीष शुभबात हो

इस सावन भींगे मन, ऐसी बरसात हो।


धीरेन्द्र सिंह

04.08.2024

16.47



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