सोमवार, 8 अप्रैल 2024

रूठ गईं

 वह मुझसे गईं रूठ किसी बात पर

रह गई बातें अधूरी सी गांठ भर


दिल भी बोले पर पूरा ना बोल पाए

मन के आंगन रंग विविध ही दिखाए

अभिलाषाएं हों मुखरित दिखते चाँद भर

रह गई बातें अधूरी सी गांठ भर


वह नहीं तो क्या करें काव्य लिखें

उसकी बातों से लिपटकर बवाल लिखें

मन हर सुर में चीत्कारता है नाद भर

रह गई बातें अधूरी सी गांठ भर


सीखा देता है जीवन जीने का तरीका

जीता है कौन जीवन जीने के सरीखा

अभिनय हो जाती आदत अक्सर बाहं भर

रह गई बातें अधूरी सी गांठ भर।


धीरेन्द्र सिंह


09.04.2024

09.12

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