सोमवार, 8 अप्रैल 2024

करिश्माई आप

 सघन हो जतन हो मगन हो

करिश्माई आप का गगन हो


भावनाओं की विविध उत्पत्तियाँ

कामनाओं की कथित अभिव्यक्तियां

आप सृजनकर्ता कुनकुनी तपन हो

करिश्माई आप का गगन हो


पर्वतों की फुनगियों के फूल हैं

सुगंधित सृष्टि आप समूल हैं

हृदय अर्चना की मृदुल अगन हो

करिश्माई आप का गगन हो


नहीं मात्र मनभाव प्रशस्तियाँ

बेलगाम होती हैं आसक्तियां

आपके सहन में अपनी लगन हो

करिश्माई आप का गगन हो।



धीरेन्द्र सिंह

08.04.2024

09.32

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें