शनिवार, 27 अप्रैल 2024

संसार

 मन डैना उड़ा भर हुंकार

बचा ही क्या पाया संसार


तिल का ताड़ बनाते लोग

जीवन तो बस ही उपभोग


उपभोक्ता की ही झंकार

बचा ही क्या पाया संसार


कलरव में वह संगीत नहीं

हावभाव में अब गीत नहीं

निज आकांक्षा ही दरकार

बचा ही क्या पाया संसार


कृत्रिम प्यार उपभोग कृत्रिम

एकल सब जीवन मिले कृत्रिम

परिवार का कहां है दरबार

बचा ही क्या पाया संसार


भाव बुलबुले व्यवहार मनचले

सोचें कौन है दूध धुले

शक-सुबहा नित का तकरार

बचा ही पाया क्या संसार


मन डैना उड़ता मंडराए

दूसरे डैने यदि पा जाएं

परिवर्तन की चले बयार

बचा ही क्या पाया संसार।


धीरेन्द्र सिंह

27,.04.2024

08.31

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