रविवार, 28 अप्रैल 2024

तलाश

 आप अब झूमकर आती नहीं हैं

मौसम संग ढल गाती नही हैं

योजनाएं घर की लिपट गईं है

उन्मुक्त होकर बतियाती नहीं हैं


यहां यह आशय प्रणय ही नहीं

पर जगह बतलाएं प्रणय नहीं है

सैद्धांतिक, सामाजिक बंधन है

ढूंढा तो लगा आप कहीं नहीं हैं


हो गया है प्यार इसे पाप समझेंगी

सोशल मीडिया क्या पुण्यात्मा नही है

यह सोच भी मोच से लगे ग्रसित

प्यारयुक्त क्या मुग्ध आत्मा नहीं है


दूरियां भौगोलिक हैं मन की नहीं

क्या मन की भरपाई नहीं है

कविता है एक प्रयास ही तो है


क्या कोई ऐसी चतुराई नहीं है।


धीरेन्द्र सिंह

28.04.2024

11.04

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