सब मनबतिया जग सारी रतिया, ओ मनबसिया
चांद पिघल तकिया संग झूमे, झिलमिल रतिया
अभिलाषाओं के आंगन में दृग हुलसित छाजन
हृदय उल्लसित तो करे कौन उसका वाचन
गहन तरंगों में ध्वनि भ्रमित भ्रमर नीदिया
चांद पिघल तकिया संग झूमे, झिलमिल रतिया
सांखल खटकी द्वार की हिचकी पाहुन आए
ठग गई रात महक के कोरी खुद ही उफनाए
एक निपट सौ जुगत हार बैठीं सब नीतियां
चांद पिघल तकिया संग झूमे, झिलमिल रतिया
मन के कितने रंग, उमंग अबीर और गुलाल
पुलकित भाव रंग संग कपोल रचित भाल
ताल नई कुछ चाल नई अभिनव ठाढ़ी कृतियाँ
चांद पिघल तकिया संग झूमे, झिलमिल रतिया।
धीरेन्द्र सिंह
25.03.2024
08.12
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