एक खयाल का कमाल
आप ही का है धमाल
स्पंदनों की चाँदनी है
दूरियों का है मलाल
तुम कहो क्यों सोच
विगत का ही सवाल
ऐसी सोच से ही
हृदय करता है बवाल
सुन रही हो रागिनी
स्वर का है मलाल
सप्तक हतप्रभ खड़े हैं
भटक गए हैं ताल
चलो एकराग अब बनें
गति हो सुगम द्रुतताल
समन्वय ही राह जीवम
तुम सदा हो दृगभाल।
धीरेन्द्र सिंह
15.03.2024
22.36
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